Sunday, December 11, 2011

मुझको मुझसे चुराने लगा है तू....

प्यार का मीठा एहसास दिलाने लगा है तू 
अब तो मुझे मुझसे चुराने लगा हैं तू 

वीरान थी ये ज़िन्दगी तेरे आने से पहले 
खुशियों के सपने दिखाने लगा है तू 

हर पल होता है बस तेरा ही एहसास 
इस क़दर मेरी सांसों में समाने लगा है तू 

रास्ते पे चलते चलते अक्सर घूम जाती हूँ 
अब मेरे साथ साया बनकर आने लगा है तू 

तेरी चाहतों का साया है सवार कुछ इस क़दर, 
के हर पल, हर जगह नज़र आने लगा है तू... 

नाम कौन सा भी लूँ अपने लबों पे 
आपका चेहरा नज़र आता है कुछ इस तरह समाने लगा है तू 

जाने कौन सी डोर है तेरी ओर खिचे जाती हूँ 
मुझे अपनी दीवानी बनाने लगा है तू...

तस्वीर में अक्सर महसूस होता है मुझे 
छोड़ के दुनिया बाहों में समाने लगा है तू... 

क्या नाम दूँ इसको 
जो मेरे को हर लम्हा बेचैन करता है... ?

Sunday, November 27, 2011

मेरे लिए तुम वो चाँद हो...

मेरे लिए तुम उस चाँद की तरह हो 
जिसे मैं देख तो सकती हूँ 
पर कभी उसे पा नहीं सकती...



मेरे लिए तुम उस चाँद की तरह हो 
जिसकी तरफ मैं हाथ तो बढ़ा सकती हूँ 
पर कभी उसे छू नहीं सकती...


मेरे लिए तुम उस चाँद की तरह हो 
जिसे मैं करीब महसूस तो करती हू
पर कभी उसके नज़दीक जा नहीं सकती...


मेरे लिए तुम उस चाँद की तरह हो 
जिसकी रौशनी में, मैं खुदको पहचानना चाहती हूँ
पर हमेशा रात के अँधेरे में खो जाती हूँ...


मेरे लिए तुम उस चाँद की तरह हो 
जिसकी गहराई में, मैं डूब जाना चाहती हूँ
पर खुदको हमेशा किनारे पर ही पाती हूँ...


मेरे लिए तुम वो चाँद हो 
जो ना कभी मेरी ज़मी पर आएगा 
और ना कभी मेरा हो पायेगा 
पर फिर भी वो तुम हो...

- सृजना

Tuesday, November 15, 2011

नया साल मुबारक

नया साल 
लेके आएगा नए उम्मीदें 
जो पूरे होंगे कि नहीं, नहीं पता 

लेके आएगा नए रास्ते 
जो कहाँ तक ले जायेंगे नहीं पता 

लेके आएगा नए लोग 
जो क्या देंगे हमें नहीं पता 

लेके आएगा नयी सुबह 
जो कब तक रौशनी देगा नहीं पता 

लेके आएगा नए रिश्ते 
जो हमें निभा पाएंगे कि नहीं, नहीं पता 

क्या होगा इस नए साल में नहीं पता 
फिर भी सभी की ख्वाहिशें पूरी हो ये आशा है हमारी 
नया साल मुबारक 

Monday, November 14, 2011

वो अज़नबी लड़का...


मुझे लगता है ऐसा कभी - कभी
जैसे वो अनजबी लड़का 
मुझसे प्यार करता था 
मुझे चाहता था 
अक्सर युही छुप- छुप कर …….
देखता था..
जाने क्या सोच कर 
नजरें चुरा लेता था 
कुछ घबरा सी जाती थी मैं 
महसूस मुझे यह होता था कि 
शायद मुझे वो बहुत चाहता था 
मुझे ऐसा एहसास दिलाता था जैसे 
वो मुझे कुछ कहना चाहता था 
मेरे पूछने पर बात को पलट देता था 
कुछ घबरा के सो जाती थी मैं 
चोरी चोरी मेरे को पुकार कर छुप जाता था 
वो अनजबी लड़का शायद प्यार करता था मुझ से 
ऐसा महसूस होता था जाने क्यूँ मुझे ?
दिल भी कितना पागल है 
क्या - क्या सोचता रहता है 
कुछ मासूम से जज़्बात हैं 
कुछ अनदेखे सपने हैं 
मगर वो नहीं जानता शायद 
मेरी ज़िन्दगी तो वो ही था.…………

- सृजना

Sunday, September 18, 2011

इंतज़ार

एक दिन तुमने 
थामा था हाथ मेरा 

मेरे हाथो से तुम्हारे हाथो की 
खुशबू नहीं जाती 

तुम बहुत प्यार से 
पुकारते थे नाम मेरा 

मेरे कानो से तुम्हारी वो 
आवाज़ नहीं जाती 

मैं बुलाती भी नहीं थी 
और तुम आ जाते थे 

अब बुलाने पर भी मेरी आवाज़ 
तुम तक नहीं जाती 

मैं जानती हूँ ये शहर 
ये रास्ते तुम्हारे नहीं 


फिर भी मेरी आँखों से
इंतज़ार की आदत नहीं जाती.......

इंतज़ार आखिर कब तक ? 




- सृजना

Monday, September 5, 2011

दिल आखिर तू क्यूँ रोता है ?


आज जब दर्द के बादल छाये
आज जब गम के साये लहराए 
जब आँसू पलकों तक आए 
जब ये तन्हा दिल घबराए 
जब ये दिल जोर से धड़कने लगे 
हम ने दिल को ये समझाया
दिल आखिर तू क्यूँ रोता है ?

दुनिया में आखिर ऐसा ही होता है 
ये जो गहरा सन्नाटा छाया है 
वक़्त ने किसी को नहीं छोड़ा 
थोड़ा गम है सभी की किस्मत में 
थोड़ा धूप है सभी के हिस्से में 
हर पल कुछ न कुछ होता है 
आखिर क्यूँ ऐसा होता है ?
दिल आखिर तू क्यूँ रोता है ?

Sunday, September 4, 2011

काश...!


काश! वो देख सकते
टूटे हुए दिल का हाल 
बहते हुए आंसुओं को 
इस अधूरे मौसम को

काश! वो पढ़ सकते
मेरे हांथों की लकीरों को
मेरे ख़्वाबों को
इस दिल की धड़कन को 

काश! वो पढ़ पाते
मेरे लफ़्जों की गहराइयों को 
मेरी आँखों की सच्चाई को 
महफ़िल की तन्हाई को

काश! वो जोड़ सकते 
इस दिल को
इस रिस्ते को
इस वादे को

लेकिन ये सोच कर चुप हो जाते हैं 
काश! वो जान सकते मेरी मोहब्बत को
मेरे प्यार को
मेरे दिल की तड़प को

Thursday, August 18, 2011

वो...

मेरी आँखों पे मरता था  
मेरी बातों पे हँसता था 
मेरी अदाओं पे मिट जाता था 
मेरे आसुओं से उसे दर्द होता था 
ना जाने कौन था वो 
जो मुझे खोने से डरता था 
मुझसे जब भी मिलता था 
हर बार एक ही बात करता था 

सुनो
मैं भूल जाऊं तो
मैं रूठ जाऊं तो
तुम भूल पाओगी क्या सब कुछ 
यूँही हँसती रहोगी क्या हर पल
यूँही हँसाते रहोगी क्या हर पल 

यही बातें थी उसकी हर पल
यही यादें थी उसकी मेरे पास
यही पता है मुझको
मुझे वो प्यार करता था
मुझे खोने से डरता था....

Wednesday, August 10, 2011

मन किया...

आज फिर दुनिया को भुलाने का मन किया
इस भीड़ से खुद को मिटने का मन 
किया
खो गयी थी ये रूह जाने किस रास्
ते
आज उसे सही राह लेन का मन किया

जिन अपनों को भुलाया था हमने
आज उन्हें याद कर जाने का मन किया
जिनका साथ छोड़ दिया था सफ़र मे

आज फिर उनका साथ निभाने का मन 
किया...

जिनको दिया था दुःख कभी
उन्हें खुश कर जाने का मन किया 
आँखों में दिए थे आँसू जिन्हें
उनके चेहरे पर मुस्कान लेन का 
मन किया

किया था जिन्हें प्यार कभी
आज उन पर मिट जाने का मन किया
हर वक़्त रहा था जिनका सहारा
उन्हें शुक्रिया कह जाने का मन 
किया

पराया समझा जिसने अपनों को
उन्हें फिर अपना बनाने का मन कि
या
बिताये थे जो पल साथ में
उन पलों में खो जाने का मन किया
...

जिंदा हुए वो भूली यादें
आज उनमें बह जाने का मन किया
बहुत सुन्दर दिखी आज दुनिया
आज फिर से जीने का मन किया...!!

Thursday, July 28, 2011

डर लगता है...

कोई आ कर मेरा हाथ थाम ले 
मुझे तनहाइयों से डर लगता है...

समा जाए कोई मेरे वजूद में 
मुझे जुदाइयों से डर लगता है...

मुहब्बत में डूब जाऊँ मैं भी मगर,
मुझे गहराईयों से डर लगता है...

कर लूँ बर्बाद ज़िन्दगी अपनी मगर
मुझे तबाहियों से डर लगता है...

ऐ दोस्त ! तू कहे तो हो जाऊँ किसी की मगर
मुझे बेवफाइयों से डर लगता है...


- सृजना

Tuesday, July 26, 2011

तेरे बिना



हमारे ना होने से कुछ भी नहीं बदला,
ये सूरज भी वहीँ से निकलता है,
आसमान पे तारे भी निकलते हैं,
और चाँद की चांदनी भी होती है...




हवा भी चलती है,
नदियाँ भी बहती हैं,
फूल भी खिलते हैं,
इनमें खुशबु भी होती है...





संसार भी चलता है,
लोग भी अपने अपने काम में मस्त हैं 
सब कुछ वही तो है
और वैसा ही है...








लेकिन,
ना जाने क्यूँ,
तुम्हारे ना होने से हर चीज अधूरी सी लगती है,
हर सुबह, शाम सी लगती है,
हर मुस्कान उदास सी लगती है,
हर महफ़िल अन्जान सी लगती है,
हर धड़कन बेजान सी लगती है,
सच तो ये है कि 
सारी दुनिया वीरान सी लगती है...




- सृजना

Sunday, July 24, 2011

मेरी कहानी...

कहाँ इतनी सज़ाएँ हो, भला इस जिंदगानी में,
हजारों घर हुए रौशन जब मेरा दिल जला...

सुकून की जिंदगी छोड़ दी एक तेरी खातिर,
मगर फिर भी मेरी चाहत से तुम को है गिला...

एक लफ्ज़ मोहब्बत की हमने भीख मांगी थी,
तरस गए ख़ुशी को हम, मिली है बस यही सजा...

टूटा हुआ ये दिल लेकर मैं किसके पास जाउंगी,
है कौन वो? जो मेरे दिल की है दवा...

तेरी आँखें, तेरी सांसें, तेरा चेहरा, तेरी धड़कन;
मैं कैसे भूल पाऊँगी तेरी हर एक अदा...

किसी को क्या खबर मुझ पर हर पल क्या गुज़रती है,
मेरी सारी कहानी का है तू ही आशना...

जानती हूँ कि मैं तेरे काबिल नहीं, पर ऐसा समझो न तुम मुझको ऐसा,
रहेगी हमेशा साथ तुम्हारे, याद रखना मेरी हर दुआ...

- सृजना

Friday, July 15, 2011

राज़...

हर वक़्त लडाई करता रहता था,
वो सब तो मुझसे बातें करने की कोशिश थी...

देखा पलट के उसे के हसरत उसे भी थी,
मैं जिस पे मिट गयी, मोहब्बत उसे भी थी...

चुप हो गया था देख के वो भी इधर-उधर,
दुनिया से मेरी तरह शिकायत, उसे भी थी...

ये सोच कर अँधेरे को गले से लगा लिए,
रातों को जागने की आदत उसे भी थी...

तलाश रहा था जब मुझे यहाँ - वहाँ,
तब पता चला उसे भी मेरी याद परेशां करती थी...

वो रो दिया था मुझको परेशां देख कर,
उस दिन ये राज़ खुला कि मेरी ज़रूरत उसे भी थी...


- सृजना

Friday, April 15, 2011

तरस रहे हैं



एक उम्मीद की किरण के लिए


एक जीवन की आशाकिरण के लिए


एक रास्ते के अंत के लिए 


एक ख़ुशी की झोंके के लिए 


एक साथी के सहारे के लिए  


एक रिश्ते की शुरुवात के लिए 


एक परीक्षा के अंजाम के लिए  


कब होगा यह तरस का अंत 

पल भर में



खुशियाँ छिन गयीं 


सपने टूट गए 


उम्मीद के सारे द्वार बंद हो गए


जीवन थम सा गया 


सांसें रुक गयी 


साथी बिछड़ गए


प्यार दूर हो गया 


आंसुओं के सैलाब बहने लगे 

Saturday, April 2, 2011

दो ही क्यों ?



दो आँखें चाहिए देखने के लिए


दो हाथ चाहिए ताली बजाने के लिए


दो दिल मिलने चाहिए प्यार करने के लिए


दो लोग चाहिए दोस्ती निभाने के लिए


दो पैर चाहिए चलने के लिए


सभी जगह दो दो चाहिए


पर दिल टूटने का दर्द एक ही को क्यूँ ?

कब तक

इनके आंसुओं का कारण


इनके दिल पर पत्थर का बोझ


इनके परेशानियों का कारण


इनके मजबूरियों  का कारण


इनके दर्द का कारण


इनके दिल की अशांति का कारण


बनते रहेंगे
आखिर कब तक ?

किसी के लिए...





ज़िन्दगी जीना है किसी के लिए
ज़िन्दगी खोना है किसी के लिए
ज़िन्दगी रूठ जाएगी किसी के लिए
ज़िन्दगी रो रही है किसी के लिए
ज़िन्दगी हंसती है किसी के लिए
ज़िन्दगी खुद को बदलने को तैयार है किसी के लिए


पर वो किसी के लिए इस ज़िन्दगी में कब आएगा ?

क्या करूँ ?

दिल ने कहा चुप रहा कर,
दिमाग ने कहा बोल दे...




पलकों ने कहा आँसू मत बहा,
आँखों ने कहा रो दे...




तकदीर ने कहा आराम से बैठ,
किस्मत ने कहा लड़ाई कर ...




ज़िन्दगी ने कहा आगे बढ़,
हकीकत ने कहा लड़ाई कर...




कदमों ने कहा पलट जा,
रास्ते ने कहा आगे बढ़...




प्यार ने कहा भरोसा कर,
दोस्ती ने कहा, "भरोसा है"...




अब किसकी सुनूँ और किसकी बात मानूँ,
 ऐ दोस्त ! कोई तो बताओ के अब मैं क्या करूँ ?

क्या बात है...





किताबों के पन्ने पलट के सोच रहे थे,
यूँही पलट जाए ज़िन्दगी तो क्या बात है...
 


तमन्ना और ख्वाहिशें पूरी हो ख्वाबो में,
हकीकत बन जाए तो क्या बात है...


लोग दोस्त बनाते हैं अपने मतलब के लिए,
बिन मतलब कोई आए तो क्या बात है...




जो शरीफों की शराफत में न हो,
वो एक शराबी कह दे तो क्या बात है...





जो हम न कह सके,
वह वो कह दें तो क्या बात है...




तोड़ करके तो सब जायेंगे दिल मेरा,
कोई उन्हें जोड़ दे और फिर से टूटने ना दे तो क्या बात है...

Saturday, March 5, 2011

दिल से


दिल से


आँसू आने से पहले 
तुम पोंछने के लिए आ जाओ


पुकारने से पहले
हाज़िर हो जाओ


चाहने से पहले
तुम ही मेरा हाथ माँग लो


दर लगने से पहले
तुम अपने गले लगा लो


कोई शब्द बोलने से पहले
तुम समझ जाओ


 हंसने से पहले
उसका कारण आप बन जाओ


दिल से दिल तक
कब पँहुचेगा
कहा हो मेरे हम सफ़र

Monday, February 28, 2011

आखिर क्यूँ...



मिलना बिछड़ना सब किस्मत का खेल है 
यही होने था तो मिलाया क्यूँ ?


कहीं नफरत और कहीं दिल का मिलन होता है 
दिल का मिलना ठीक है पर ये नफरत क्यूँ ?


बिक जाता हैं हर रिश्ता इस दुनिया में 
तो ये रिश्ते आखिर बनाये क्यूँ ?


बस एक ऐसी ज़िन्दगी जीना चाहते हैं
के जिसमे हम अपने अरमान पूरा कर सके 
पर मुझे तो तूने इतना दर्द दिया क्यूँ ?