Monday, February 28, 2011

आखिर क्यूँ...



मिलना बिछड़ना सब किस्मत का खेल है 
यही होने था तो मिलाया क्यूँ ?


कहीं नफरत और कहीं दिल का मिलन होता है 
दिल का मिलना ठीक है पर ये नफरत क्यूँ ?


बिक जाता हैं हर रिश्ता इस दुनिया में 
तो ये रिश्ते आखिर बनाये क्यूँ ?


बस एक ऐसी ज़िन्दगी जीना चाहते हैं
के जिसमे हम अपने अरमान पूरा कर सके 
पर मुझे तो तूने इतना दर्द दिया क्यूँ ?

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