Sunday, September 18, 2011

इंतज़ार

एक दिन तुमने 
थामा था हाथ मेरा 

मेरे हाथो से तुम्हारे हाथो की 
खुशबू नहीं जाती 

तुम बहुत प्यार से 
पुकारते थे नाम मेरा 

मेरे कानो से तुम्हारी वो 
आवाज़ नहीं जाती 

मैं बुलाती भी नहीं थी 
और तुम आ जाते थे 

अब बुलाने पर भी मेरी आवाज़ 
तुम तक नहीं जाती 

मैं जानती हूँ ये शहर 
ये रास्ते तुम्हारे नहीं 


फिर भी मेरी आँखों से
इंतज़ार की आदत नहीं जाती.......

इंतज़ार आखिर कब तक ? 




- सृजना

Monday, September 5, 2011

दिल आखिर तू क्यूँ रोता है ?


आज जब दर्द के बादल छाये
आज जब गम के साये लहराए 
जब आँसू पलकों तक आए 
जब ये तन्हा दिल घबराए 
जब ये दिल जोर से धड़कने लगे 
हम ने दिल को ये समझाया
दिल आखिर तू क्यूँ रोता है ?

दुनिया में आखिर ऐसा ही होता है 
ये जो गहरा सन्नाटा छाया है 
वक़्त ने किसी को नहीं छोड़ा 
थोड़ा गम है सभी की किस्मत में 
थोड़ा धूप है सभी के हिस्से में 
हर पल कुछ न कुछ होता है 
आखिर क्यूँ ऐसा होता है ?
दिल आखिर तू क्यूँ रोता है ?

Sunday, September 4, 2011

काश...!


काश! वो देख सकते
टूटे हुए दिल का हाल 
बहते हुए आंसुओं को 
इस अधूरे मौसम को

काश! वो पढ़ सकते
मेरे हांथों की लकीरों को
मेरे ख़्वाबों को
इस दिल की धड़कन को 

काश! वो पढ़ पाते
मेरे लफ़्जों की गहराइयों को 
मेरी आँखों की सच्चाई को 
महफ़िल की तन्हाई को

काश! वो जोड़ सकते 
इस दिल को
इस रिस्ते को
इस वादे को

लेकिन ये सोच कर चुप हो जाते हैं 
काश! वो जान सकते मेरी मोहब्बत को
मेरे प्यार को
मेरे दिल की तड़प को