Thursday, July 28, 2011

डर लगता है...

कोई आ कर मेरा हाथ थाम ले 
मुझे तनहाइयों से डर लगता है...

समा जाए कोई मेरे वजूद में 
मुझे जुदाइयों से डर लगता है...

मुहब्बत में डूब जाऊँ मैं भी मगर,
मुझे गहराईयों से डर लगता है...

कर लूँ बर्बाद ज़िन्दगी अपनी मगर
मुझे तबाहियों से डर लगता है...

ऐ दोस्त ! तू कहे तो हो जाऊँ किसी की मगर
मुझे बेवफाइयों से डर लगता है...


- सृजना

Tuesday, July 26, 2011

तेरे बिना



हमारे ना होने से कुछ भी नहीं बदला,
ये सूरज भी वहीँ से निकलता है,
आसमान पे तारे भी निकलते हैं,
और चाँद की चांदनी भी होती है...




हवा भी चलती है,
नदियाँ भी बहती हैं,
फूल भी खिलते हैं,
इनमें खुशबु भी होती है...





संसार भी चलता है,
लोग भी अपने अपने काम में मस्त हैं 
सब कुछ वही तो है
और वैसा ही है...








लेकिन,
ना जाने क्यूँ,
तुम्हारे ना होने से हर चीज अधूरी सी लगती है,
हर सुबह, शाम सी लगती है,
हर मुस्कान उदास सी लगती है,
हर महफ़िल अन्जान सी लगती है,
हर धड़कन बेजान सी लगती है,
सच तो ये है कि 
सारी दुनिया वीरान सी लगती है...




- सृजना

Sunday, July 24, 2011

मेरी कहानी...

कहाँ इतनी सज़ाएँ हो, भला इस जिंदगानी में,
हजारों घर हुए रौशन जब मेरा दिल जला...

सुकून की जिंदगी छोड़ दी एक तेरी खातिर,
मगर फिर भी मेरी चाहत से तुम को है गिला...

एक लफ्ज़ मोहब्बत की हमने भीख मांगी थी,
तरस गए ख़ुशी को हम, मिली है बस यही सजा...

टूटा हुआ ये दिल लेकर मैं किसके पास जाउंगी,
है कौन वो? जो मेरे दिल की है दवा...

तेरी आँखें, तेरी सांसें, तेरा चेहरा, तेरी धड़कन;
मैं कैसे भूल पाऊँगी तेरी हर एक अदा...

किसी को क्या खबर मुझ पर हर पल क्या गुज़रती है,
मेरी सारी कहानी का है तू ही आशना...

जानती हूँ कि मैं तेरे काबिल नहीं, पर ऐसा समझो न तुम मुझको ऐसा,
रहेगी हमेशा साथ तुम्हारे, याद रखना मेरी हर दुआ...

- सृजना

Friday, July 15, 2011

राज़...

हर वक़्त लडाई करता रहता था,
वो सब तो मुझसे बातें करने की कोशिश थी...

देखा पलट के उसे के हसरत उसे भी थी,
मैं जिस पे मिट गयी, मोहब्बत उसे भी थी...

चुप हो गया था देख के वो भी इधर-उधर,
दुनिया से मेरी तरह शिकायत, उसे भी थी...

ये सोच कर अँधेरे को गले से लगा लिए,
रातों को जागने की आदत उसे भी थी...

तलाश रहा था जब मुझे यहाँ - वहाँ,
तब पता चला उसे भी मेरी याद परेशां करती थी...

वो रो दिया था मुझको परेशां देख कर,
उस दिन ये राज़ खुला कि मेरी ज़रूरत उसे भी थी...


- सृजना