Friday, July 15, 2011

राज़...

हर वक़्त लडाई करता रहता था,
वो सब तो मुझसे बातें करने की कोशिश थी...

देखा पलट के उसे के हसरत उसे भी थी,
मैं जिस पे मिट गयी, मोहब्बत उसे भी थी...

चुप हो गया था देख के वो भी इधर-उधर,
दुनिया से मेरी तरह शिकायत, उसे भी थी...

ये सोच कर अँधेरे को गले से लगा लिए,
रातों को जागने की आदत उसे भी थी...

तलाश रहा था जब मुझे यहाँ - वहाँ,
तब पता चला उसे भी मेरी याद परेशां करती थी...

वो रो दिया था मुझको परेशां देख कर,
उस दिन ये राज़ खुला कि मेरी ज़रूरत उसे भी थी...


- सृजना

6 comments:

  1. वो रो दिया था मुझको परेशां देख कर,
    उस दिन ये राज़ खुला कि मेरी ज़रूरत उसे भी थी...

    बहुत सुन्दर सृजना :)

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  2. चलिए अहसास तो हुआ की आपकी ज़रूरत है | सुंदर अतिसुंदर

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  3. अच्छे सवालों का कोई जवाब क्यों नहीं देता? आपकी राय मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है| जरुर पधारें | www.akashsingh307.blogspot.com

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  4. bahuth acha hai


    ne avasaram entha vntundo thana avasarm neku vuntundi

    very nice

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