Sunday, November 27, 2011

मेरे लिए तुम वो चाँद हो...

मेरे लिए तुम उस चाँद की तरह हो 
जिसे मैं देख तो सकती हूँ 
पर कभी उसे पा नहीं सकती...



मेरे लिए तुम उस चाँद की तरह हो 
जिसकी तरफ मैं हाथ तो बढ़ा सकती हूँ 
पर कभी उसे छू नहीं सकती...


मेरे लिए तुम उस चाँद की तरह हो 
जिसे मैं करीब महसूस तो करती हू
पर कभी उसके नज़दीक जा नहीं सकती...


मेरे लिए तुम उस चाँद की तरह हो 
जिसकी रौशनी में, मैं खुदको पहचानना चाहती हूँ
पर हमेशा रात के अँधेरे में खो जाती हूँ...


मेरे लिए तुम उस चाँद की तरह हो 
जिसकी गहराई में, मैं डूब जाना चाहती हूँ
पर खुदको हमेशा किनारे पर ही पाती हूँ...


मेरे लिए तुम वो चाँद हो 
जो ना कभी मेरी ज़मी पर आएगा 
और ना कभी मेरा हो पायेगा 
पर फिर भी वो तुम हो...

- सृजना

6 comments:

  1. .........par phir bhi wo tum ho,
    wo tum hi ho,jo mujhe
    har ek sitare me nazar ata hai,
    chand to bas bahana hai,
    chehra to usme bhi tumahra hi nazar ata hai.

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  2. बेहद खूबसूरती से आपने भावो को शब्द दिया है.
    बेहतरीन रचना के लिए बधाई.

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  3. Ab to nafarat ho gayi hai is din ke ujale se, rah dekhta hun us raat ki, jisme bus sirf tum hi tum ho...Dilin

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