Sunday, September 18, 2011

इंतज़ार

एक दिन तुमने 
थामा था हाथ मेरा 

मेरे हाथो से तुम्हारे हाथो की 
खुशबू नहीं जाती 

तुम बहुत प्यार से 
पुकारते थे नाम मेरा 

मेरे कानो से तुम्हारी वो 
आवाज़ नहीं जाती 

मैं बुलाती भी नहीं थी 
और तुम आ जाते थे 

अब बुलाने पर भी मेरी आवाज़ 
तुम तक नहीं जाती 

मैं जानती हूँ ये शहर 
ये रास्ते तुम्हारे नहीं 


फिर भी मेरी आँखों से
इंतज़ार की आदत नहीं जाती.......

इंतज़ार आखिर कब तक ? 




- सृजना

3 comments:

  1. इंतजार की कोई हद नहीं होती सुंदर रचना बधाई

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  2. सृजना, आपकी रचना के भाव बहुत अच्छे हैं, अगर आप कोशिश जारी रखों तो अच्छा लिखने लगोगे! सुन्दर रचना!

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