कोई आ कर मेरा हाथ थाम ले
मुझे तनहाइयों से डर लगता है...
समा जाए कोई मेरे वजूद में
मुझे जुदाइयों से डर लगता है...
मुहब्बत में डूब जाऊँ मैं भी मगर,
मुझे गहराईयों से डर लगता है...
मुझे तनहाइयों से डर लगता है...
समा जाए कोई मेरे वजूद में
मुझे जुदाइयों से डर लगता है...
मुहब्बत में डूब जाऊँ मैं भी मगर,
मुझे गहराईयों से डर लगता है...
कर लूँ बर्बाद ज़िन्दगी अपनी मगर
मुझे तबाहियों से डर लगता है...
ऐ दोस्त ! तू कहे तो हो जाऊँ किसी की मगर
मुझे बेवफाइयों से डर लगता है.. .
- सृजना
मुझे तबाहियों से डर लगता है...
ऐ दोस्त ! तू कहे तो हो जाऊँ किसी की मगर
मुझे बेवफाइयों से डर लगता है..
- सृजना
nice poetry Srujana...
ReplyDeletedil ko choo gai tumhari kavita...
वाह क्या बात है! सृजना जी डरते हुये जीना बहुत मुश्किल है। शुभकामनायें।
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