हर वक़्त लडाई करता रहता था,
वो सब तो मुझसे बातें करने की कोशिश थी...
देखा पलट के उसे के हसरत उसे भी थी,
मैं जिस पे मिट गयी, मोहब्बत उसे भी थी...
चुप हो गया था देख के वो भी इधर-उधर,
दुनिया से मेरी तरह शिकायत, उसे भी थी...
ये सोच कर अँधेरे को गले से लगा लिए,
रातों को जागने की आदत उसे भी थी...
तलाश रहा था जब मुझे यहाँ - वहाँ,
तब पता चला उसे भी मेरी याद परेशां करती थी...
वो रो दिया था मुझको परेशां देख कर,
उस दिन ये राज़ खुला कि मेरी ज़रूरत उसे भी थी...
- सृजना
वो रो दिया था मुझको परेशां देख कर,
ReplyDeleteउस दिन ये राज़ खुला कि मेरी ज़रूरत उसे भी थी...
बहुत सुन्दर सृजना :)
चलिए अहसास तो हुआ की आपकी ज़रूरत है | सुंदर अतिसुंदर
ReplyDeleteअच्छे सवालों का कोई जवाब क्यों नहीं देता? आपकी राय मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है| जरुर पधारें | www.akashsingh307.blogspot.com
ReplyDeletebahuth acha hai
ReplyDeletene avasaram entha vntundo thana avasarm neku vuntundi
very nice
good one
ReplyDeletebahot khub
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