एक दिन तुमने
थामा था हाथ मेरा
मेरे हाथो से तुम्हारे हाथो की
खुशबू नहीं जाती
तुम बहुत प्यार से
पुकारते थे नाम मेरा
मेरे कानो से तुम्हारी वो
आवाज़ नहीं जाती
मैं बुलाती भी नहीं थी
और तुम आ जाते थे
अब बुलाने पर भी मेरी आवाज़
तुम तक नहीं जाती
मैं जानती हूँ ये शहर
ये रास्ते तुम्हारे नहीं
इंतज़ार आखिर कब तक ?
- सृजना
थामा था हाथ मेरा
मेरे हाथो से तुम्हारे हाथो की
खुशबू नहीं जाती
तुम बहुत प्यार से
पुकारते थे नाम मेरा
मेरे कानो से तुम्हारी वो
आवाज़ नहीं जाती
मैं बुलाती भी नहीं थी
और तुम आ जाते थे
अब बुलाने पर भी मेरी आवाज़
तुम तक नहीं जाती
मैं जानती हूँ ये शहर
ये रास्ते तुम्हारे नहीं
- सृजना
nice poem dear... best in ur collection
ReplyDeleteइंतजार की कोई हद नहीं होती सुंदर रचना बधाई
ReplyDeleteसृजना, आपकी रचना के भाव बहुत अच्छे हैं, अगर आप कोशिश जारी रखों तो अच्छा लिखने लगोगे! सुन्दर रचना!
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